Digital कलम
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मुसाफिर किस्मत का !
उठता हुआ सा तूफान हमने देखा,
उठता हुआ सा ज्वार हमने देखा,
देखा है हमने उठता हुआ सा संसार |
मन कहता है यही बार बार ,
आगाज़ होगा तेरा किस्मत के साथ,
चलता जा बस तू अपनी राहों पर,
चलता जा बस तू इन्ही काँटों पर |
रात के बाद सबेरा ही होता है,
काँटों के बाद फूल ही मिलता है,
पहुंचेगा तू एक दिन अपनी मंजिल पर,
एक अलग ही फिजा होगी वहां पर,
तब तू याद करेगा इन काँटों को,
जो तुझे मखमली अहसास देगें |
तब दूर क्षितिज से ,
वहां पर आयेगी एक आवाज़ शांत,
और तू बन जायेगा जग सम्राट |
(भवदीय – प्रशांत सिंह)
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