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दुर्घटना या लापरवाही– मेरा व्यक्तिगत अनुभव
बात कुछ दिनों पहले की है जब मैं रात्रि बस सेवा से दिल्ली से शिमला जा रहा था | सुबह 5 बजे का वक़्त रहा होगा, अभी बस शिमला से एक घंटा की दूरी पर थी और लगभग सभी लोग गहरी नींद में सो रहे थे | नींद के दौरान ही शरीर को एक तेज़ झटका लगा और मैं आगे वाली सीट से जाकर टकराया | तेज़ आवाज़ और झटके से कुछ समय के लिए तो दिमाग ने काम करना बंद कर दिया लेकिन जल्दी ही अहसास हो गया की कुछ अवांछित घटित हो चूका है |
हर तरफ से बच्चों के चीखने चिल्लाने की आवाज़ के साथ, चारों तरफ खून व बस के टूटे हुए शीशे पड़े थे | दिमाग की शून्यता को तोड़ते हुए मैंने सबसे पहले अपने आप को संभाला और फिर नज़रें घुमाई की कही कोई गंभीर चोटिल तो नहीं है | शायद किस्मत अच्छी थी की कोई बहुत संगीन रूप से घायल नहीं था | मैंने दूसरी सवारियों को बस से उतराने में मदद की और एम्बुलेंस सेवा को भी तत्काल अवगत करा दिया |
और जानने पर ज्ञात हुआ की बस की टक्कर सामने से आ रहे ट्रक से हुई थी जिसमे बस और ट्रक, दोनों के चालक को चोटें आई थी | समय रहते एम्बुलेंस से दोनों को हॉस्पिटल पंहुचा दिया गया | लोगों का कहना था की हमारी बस का चालक बीमार था और उसको शायद नींद आ गयी थी जिसके फलस्वरूप ये दुर्घटना हुई |
ये सब सुनकर मन में सबसे पहले यही विचार आया की – फिर ये दुर्घटना कैसी हुई, ये तो सरासर लापरवाही है, अब लापरवाही चालक की है या ड्यूटी अफसर की, जिन्होंने चालक के बीमार होने पर भी बस को चलाने का जिम्मा दिया | गलती जिसकी भी हो कारवाई तो होनी ही चाहिये | क्योंकि किसी को भी अधिकार नहीं है की आप 70 यात्रियों की जिन्दगी खतरे में डाल दें |
अगर आंकड़े की बात की जाये तो हमारे देश में हर एक मिनट पर दुर्घटना की वजह से ‘एक मौत व चार घायल’ होते हैं | पिछले साल की बात करें तो एक लाख से भी ज्यादा लोग दुर्घटना की वजह से अकारण ही मारे गए और लापरवाही इन सबका सबसे बड़ा कारण है अब चाहे लापरवाही सीट बेल्ट, हेलमेट, शराब पीकर गाडी चलाना, नियमों की जानकारी ना होना, गाड़ी चलाते हुए सो जाना या फिर चालक की गलती – कुछ भी हो लेकिन अकारण ही जिन्दगी के समाप्त हो जाने को हम कैसे भी जायज़ नहीं ठहरा सकते |
और अगर दुर्घटना बस की हो तो मृत लोगों की गिनती काफी बढ़ जाती है | क्यों ना चालक को पूर्ण आराम के बाद ही ड्यूटी दी जाये, सभी सवारी के लिए बस में सीट बेल्ट अनिवार्य कर दिया जाये, चालक के बीमार या नींद में होने की स्थिति में परिचालक को बस चालन का जिम्मा दिया जाये और समय समय पर चालक व परिचालक को नियमों का पालन करने को कहा जाये |
सबसे अच्छा तो होगा की स्कूल से ही बच्चों को यातायात व सड़क के नियमों की जानकारी दी जाये जिससे हम जनता व आने वाले पीढ़ी को लापरवाह होने से बचा सकें |
(भवदीय – प्रशांत सिंह)
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