हमारे देश में नागरिक समानता की सच्चाई |
क्यों नहीं है हमारे देश में नागरिक समानता ?
हमारे संविधान में 8 मौलिक अधिकार हैं | सबसे पहले जिसका उल्लेख होता है, वह है – “समानता का अधिकार”– कानून की समानता तथा कानून के समक्ष समानता, धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध और रोजगार के लिए समान अवसर |
पर क्या सच में संविधान में लिखे शब्दों को जनता, न्यायपालिका, कार्यपालिका या फिर व्यवस्थापिका पालन करते हैं ? न्यायपालिका के बारे मैं यहाँ उल्लेख करना नहीं चाहूँगा | कारण आप कुछ भी सोचे , अदालत की अवमानना या कहें की अदालतें अच्छा काम कर रही हैं | लेकिन मैं यहाँ पर कुछ बिन्दुओं पर लिखना चाहूँगा, जब भारत का हर नागरिक समान है तो ऐसा क्यों होता है :
- क्यों आज भी होटल, रेस्टोरेंट, मल्टीप्लेक्स, माल्स में “Right of admission reserved” का बोर्ड लगा होता है ?
- क्यों ट्रैफिक सिग्नल पर आम जनता को घंटो रोक कर VIP के काफिले को निकाला जाता है, क्या आम इंसान के समय की कोई कद्र नहीं ?
- क्यों समाज में नेता, उच्च अधिकारियों को लाल, नीली बत्तियों बांटी हुई हैं जिन्हें हम जनता का नौकर कहते हैं? वो तो भला हो सुप्रीम कोर्ट का जिसने इन सब पर थोड़ा सा लगाम लगाया है, लेकिन बहुत थोड़ा सा |
- क्यों एक गरीब इंसान इस देश में ना पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज़ करा पाता है, न्याय मिलने की बात तो बहुत दूर की कोड़ी है ?
- क्यों सभी कानून अंग्रेजी में बनाये जाते हैं, क्यों कोर्ट में अंग्रेजी का बोलबाला है ? क्या हिंदी बोलने वाले नागरिकों के साथ ये सौतेला व्यव्हार नहीं है ?
- क्यों नौकरी हेतु प्रतियोगी परीक्षाओं के पेपर अंग्रेजी में बनाकर भारतीय भाषाओं में शब्दानुवादित किये जाते हैं ?
- क्या सिर्फ मेधावी छात्रों को ही नौकरी का अवसर मिलना चाहिये ? उन छात्रों का क्या जो किसी भी वजह से परीक्षा में कम नंबर पाते हैं ?
- क्यों गरीब जनता को अच्छा इलाज़ उपलब्ध नहीं है ? और जब इलाज़ के अभाव में या भूख से मौत होती है तो मौलिक अधिकार की बात क्यों नहीं होती ?
- जब धर्म, जाति, लिंग के आधार पर आप भेदभाव नहीं कर सकते तो क्यों नौकरी और प्रतियोगी परीक्षायों के फार्म में इन सबकी जानकारी मांगी जाती है |
- क्यों रोजगार, शिक्षा, आजीविका, स्वास्थ, आवास और ऋण में सभी को समान मौका नहीं मिलता ?
- कब हम शिक्षा और रोजगार में अवसरों की समानता बढ़ायेंगे और आरक्षण से ऊपर आकर सोचेंगे ?
- कागजों में तो समान अधिकार की बातें बहुत हैं लेकिन कब ये बातें धरातल पर आ पाएगी ?
- क्यों नहीं सबके साथ समान व्यव्हार बिना किसी भेदबाव के होना चाहिये ?
जब जनता के मौलिक आधिकारों का हनन होता है तो जनता क्या करे ? जिसकी वजह से ये सब होता है उनको तुरंत सजा का प्रावधान भी होना चाहिये | केवल संविधान में लिख देने से बात तो नहीं बनेगी | जिस तरह हमारे देश के हालात हैं उससे आज आम जनता बहुत ज्यादा उम्मीद तो नहीं करती लेकिन मूलभूत अधिकार और सुविधायें तो हमारा हक है और भारतीय संविधान भी हमें इसकी अनुमति देता है | हर नागरिक को राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक समानता मिले और इस प्रकार से शायद कभी हमारे देश में भी राम राज्य आये, बस उस दिन की प्रतीक्षा कीजिये |
“सब हो समान हमारे भारत देश में, ना हो कोई भेदभाव जन जन में |
मौलिक अधिकार मिले हम सब को, समान अवसर हो हर जन में |”
(भवदीय – प्रशांत सिंह)
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