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स्वच्छ बदलाव की शुरुआत

Digital कलम
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बदलाव तो हुआ है
कुछ दिनों पहले ही की बात है जब मैं छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस से अम्बाला से दिल्ली जा रहा था |रेल में ज्यादा भीड़ नहीं थी और ठण्ड अपेक्षाकृत बहुत ज्यादा थी | मैं जनरल डिब्बे में, खिड़की के बगल में अकेले ही बैठा हुआ था और दैनिक जागरण में हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के बारे में पढ़ रहा था | तभी २ आदमी मेरे सामने आकर बैठ गये | ग्रामीण भेष भूषा में वो दोनों मजदूर से प्रतीत हो रहे थे | कुछ देर बैठने के बाद दोनों में से एक आदमी ने अपने बैग से मूंगफली की पोटली सी निकाली और दोनों अपने में ही मस्त होकर खाने लगे | मुझे लगा की जैसे रेल के डिब्बे में लोग मूंगफली खाकर इधर उधर फेंक देते हैं और डिब्बे का पूरा फर्श गन्दा कर देते है ऐसे ही ये दोनों भी अब साफ़ पड़े रेल के डिब्बे में मूंगफली खाकर फेंकते रहेंगे और पूरा फर्श गन्दा कर देंगे | लेकिन मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही जब दोनों में से किसी ने भी फर्श पर गंदगी नहीं फेंकी | उधर रेल के इंजन ने हॉर्न बजाया और मेरे मन में अनायास ही एक मुस्कान उभर कर आ गयी और मैं सोचने लगा की कुछ हो ना हो लेकिन ‘स्वच्छ भारत अभियान’ से बदलाव की शुरुआत तो हुई है और इस थोड़े थोड़े बदलाव से ही एक दिन बड़ा बदलाव होगा |

प्रशांत द्वारा रचित अन्य रचनाएँ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें – बदलाव

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